आईएमसीएएसी-2025 का दुसरा दिन-जलवायू परिवर्तन-पारंपरिक ज्ञान और जैव-विविधता पर गहन विमर्श

हिमालय टाइम्स गबर सिंह भण्डारी श्रीनगर गढ़वाल। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर उत्तराखंड में आयोजित हिमालयी क्षेत्र में एरोसोल,वायु गुणवत्ता एवं जलवायु परिवर्तन पर तृतीय बहुविषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आईएमसीएएसी-2025 के दूसरे दिन

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हिमालय टाइम्स गबर सिंह भण्डारी

श्रीनगर गढ़वाल। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर उत्तराखंड में आयोजित हिमालयी क्षेत्र में एरोसोल,वायु गुणवत्ता एवं जलवायु परिवर्तन पर तृतीय बहुविषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आईएमसीएएसी-2025 के दूसरे दिन आज जलवायु परिवर्तन,जैव विविधता संरक्षण,पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान और वनों के सतत प्रबंधन पर सार्थक विमर्श हुआ। देश-विदेश के वैज्ञानिकों,शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने अनेक समानांतर सत्रों में भाग लेकर हिमालयी पर्यावरण के संरक्षण हेतु अपने बहुमूल्य विचार साझा किए। संगोष्ठी के संयोजक डॉ.आलोक सागर गौतम ने बताया कि दूसरे दिन के सभी सत्रों में प्रतिभागियों की सक्रिय उपस्थिति रही और चर्चाओं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ-साथ स्थानीय परंपरागत ज्ञान की प्रासंगिकता भी प्रमुख रूप से उभरकर सामने आई। दिन की शुरुआत हुई आमंत्रित वक्ता डॉ.रंजीत कुमार के प्रेरक व्याख्यान वैश्विक वायु संकट: पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच सेतु से। उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण केवल वैज्ञानिक या तकनीकी समस्या नहीं है,बल्कि यह हमारी जीवनशैली और सांस्कृतिक परंपरा से जुड़ा हुआ गंभीर वैश्विक संकट है। डॉ.कुमार ने बताया कि प्रत्येक वर्ष लगभग 70 लाख लोग वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं। उन्होंने भारत,जापान और अफ्रीका के उदाहरणों के माध्यम से यह सिद्ध किया कि स्थानीय पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान का समन्वय ही दीर्घकालिक समाधान प्रदान कर सकता है। इसके बाद डॉ.दीन मणि लाल ने अपने शोध व्याख्यान गंगा के मैदानी क्षेत्रों में एरोसोल,बादल और बिजली की पारस्परिक क्रिया में बताया कि इन क्षेत्रों में वायु में कणों की बढ़ती मात्रा से वर्षा की प्रक्रिया,बादलों की संरचना और बिजली की गतिविधियों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि अधिक एरोसोल की मात्रा वर्षा में विलंब और आंधी-तूफान की तीव्रता बढ़ाने में सहायक बनती है। डॉ.जितेंद्र बुटोला ने मानवजनित जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव और जलवायु अनुकूल वन प्रबंधन की भूमिका विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि मानव द्वारा उत्पन्न जलवायु परिवर्तन ने पर्यावरण के साथ-साथ कृषि,जैव विविधता और मानव स्वास्थ्य को भी गहराई से प्रभावित किया है। उन्होंने जलवायु अनुकूल वानिकी क्लाइमेट स्मार्ट फॉरेस्ट्री को भविष्य की आवश्यकता बताते हुए कहा कि यह वनों की उत्पादकता,पारिस्थितिकी संतुलन और स्थानीय समुदायों की आजीविका के बीच समन्वय स्थापित कर सकती है। वहीं डॉ.विक्रम एस.नेगी ने अपने शोध हिमालयी पौधों की विविधता पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में बताया कि बढ़ते तापमान के कारण कई पौधों की प्रजातियां ऊंचाई की ओर पलायन कर रही हैं,जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो रहा है। उन्होंने दीर्घकालिक निगरानी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को हिमालयी जैवविविधता की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक बताया। डॉ.विजय लक्ष्मी सहायक प्राध्यापक उच्च पर्वतीय पौध शारीरिकी अनुसंधान केंद्र ने अपने प्रस्तुतिकरण गढ़वाल हिमालय की उच्च पर्वतीय वनस्पतियों की संवेदनशीलता में कहा कि घटती बर्फबारी और बढ़ते तापमान से गढ़वाल हिमालय की अल्पाइन वनस्पतियां विलुप्ति के कगार पर हैं। उन्होंने चेताया कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही,तो उच्च हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्रों को अपूरणीय क्षति हो सकती है। दिनभर चले इन सत्रों में प्रतिभागियों ने हिमालयी पर्यावरण,पारंपरिक ज्ञान,वायुमंडलीय कण विज्ञान,वन प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन जैसे विविध विषयों पर बहुआयामी दृष्टिकोण से चर्चा की। सत्रों का संचालन विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने किया। इस अवसर पर प्रो.एम.एस.नेगी,प्रो.आर.एस.नेगी,डॉ.मनीष निगम,डॉ.विजयकांत पुरोहित,डॉ.कपिल पवार,डॉ.नेहा सहित अनेक शिक्षाविद उपस्थित रहे। प्रतिभागियों ने सभी व्याख्यानों को अत्यंत प्रेरणादायक,शोधपरक और भविष्य उन्मुख बताया। आईएमसीएएसी-2025 का दूसरा दिन रहा वैज्ञानिक उत्सव का प्रतीक,जहां पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान ने मिलकर हिमालय के सतत भविष्य की दिशा में नए आयाम प्रस्तुत किए।

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