उत्तराखंड की युवा शक्ति: रोजगार, पलायन और संभावनाएं

उत्तराखंड, जिसे हम देवभूमि के नाम से जानते हैं, केवल आध्यात्मिक और प्राकृतिक दृष्टि से ही समृद्ध नहीं है, बल्कि यहां की युवा शक्ति भी राज्य का एक महत्वपूर्ण संसाधन है। लेकिन आज उत्तराखंड
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उत्तराखंड, जिसे हम देवभूमि के नाम से जानते हैं, केवल आध्यात्मिक और प्राकृतिक दृष्टि से ही समृद्ध नहीं है, बल्कि यहां की युवा शक्ति भी राज्य का एक महत्वपूर्ण संसाधन है। लेकिन आज उत्तराखंड का युवा वर्ग गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है — खासकर रोजगार की कमी, शैक्षणिक अवसरों की सीमाएं, और बढ़ते पलायन की समस्या। इन मुद्दों को समझना और उनके समाधान की दिशा में ठोस प्रयास करना आज पहले से कहीं ज्यादा जरूरी हो गया है।

रोजगार की असली तस्वीर

राज्य के अधिकांश पहाड़ी जिलों में रोजगार के अवसरों की कमी एक बड़ा मुद्दा है। कृषि, जो कभी यहां की मुख्य जीविका थी, अब घाटे का सौदा बन चुकी है। पर्यटन उद्योग संभावनाओं से भरा है, लेकिन यह क्षेत्र भी मौसमी और अस्थायी रोजगार ही दे पाता है। सरकारी नौकरियों की संख्या सीमित है और निजी क्षेत्र की मौजूदगी अपेक्षाकृत कमजोर है। परिणामस्वरूप, शिक्षित युवाओं को राज्य से बाहर नौकरी की तलाश में पलायन करना पड़ता है।

तकनीकी शिक्षा प्राप्त करने वाले युवाओं के लिए भी राज्य में उद्योग और स्टार्टअप का माहौल अभी भी पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हुआ है। यहां तक कि नर्सिंग, इंजीनियरिंग, या अन्य व्यावसायिक क्षेत्रों के छात्र भी शिक्षा पूरी करने के बाद बाहरी राज्यों की ओर रुख करते हैं।

पलायन की बढ़ती रफ्तार

उत्तराखंड में पलायन एक सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक चुनौती बन चुका है। एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में हजारों गांव या तो खाली हो चुके हैं या उनमें आबादी तेजी से घटी है। इन ‘घोस्ट विलेजेज़’ (भूतिया गांवों) की स्थिति केवल सांख्यिकीय चिंता नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी है कि यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो राज्य की पारंपरिक पहचान, जीवनशैली और संस्कृति खतरे में पड़ सकती है।

पलायन का सबसे बड़ा कारण रोजगार और शिक्षा की कमी है। युवा, जो भविष्य के निर्माता माने जाते हैं, अगर अपनी ही भूमि को छोड़ने को मजबूर हो जाएं, तो यह किसी भी राज्य के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।

संभावनाएं: उजाला अभी भी बाकी है

हालांकि स्थिति गंभीर है, लेकिन संभावनाओं के द्वार अभी भी खुले हैं। उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक संसाधन, जैव विविधता और सांस्कृतिक धरोहर राज्य को विशेष बनाती है। यदि सही नीति और रणनीति अपनाई जाए, तो यही विशेषताएं रोजगार सृजन का माध्यम बन सकती हैं।

  1. स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देकर युवाओं को स्वरोजगार की दिशा में प्रेरित किया जा सकता है। जड़ी-बूटियों, ऑर्गेनिक खेती, डेयरी उद्योग, और हस्तशिल्प जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता देकर स्थानीय रोजगार को सशक्त किया जा सकता है।
  2. इको-टूरिज्म और एग्रो-टूरिज्म के माध्यम से पहाड़ी क्षेत्रों में रोजगार के नए आयाम खुल सकते हैं। इससे न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा, बल्कि गांवों को पुनर्जीवित करने का अवसर भी मिलेगा।
  3. डिजिटल इंडिया मिशन और इंटरनेट की पहुंच के साथ अब युवाओं के लिए घर से ही काम करने की संभावनाएं बढ़ी हैं। फ्रीलांसिंग, ऑनलाइन शिक्षा, कंटेंट क्रिएशन जैसे क्षेत्रों में युवाओं को प्रशिक्षित कर आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।
  4. स्टार्टअप संस्कृति को प्रोत्साहित करना बेहद जरूरी है। सरकार को चाहिए कि वह एक मजबूत स्टार्टअप इकोसिस्टम तैयार करे जिसमें तकनीकी, वित्तीय और मेंटरशिप सहायता मिले।

निष्कर्ष

उत्तराखंड की युवा शक्ति में असीम ऊर्जा और क्षमताएं हैं। आवश्यकता है उन्हें सही दिशा, अवसर और सहयोग देने की। यदि सरकार, समाज और निजी क्षेत्र मिलकर काम करें, तो न केवल पलायन रुकेगा बल्कि उत्तराखंड देश के लिए एक मॉडल राज्य बन सकता है — जहां पहाड़ों से लोग नीचे न उतरें, बल्कि लोग पहाड़ों पर बसने की उम्मीद करें।

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