गगवाडस्यूं घाटी-जहां प्रकृति का सौंदर्य और आस्था एकाकार होते हैं

हिमालय टाइम्स गबर सिंह भण्डारी पौड़ी/श्रीनगर गढ़वाल। पर्वतीय अंचल पौड़ी जनपद का मुख्यालय जिसे हम मंडल मुख्यालय भी कहते हैं,अपने ठीक पीछे एक अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य समेटे बैठी है गगवाडस्यूं घाटी। यह घाटी कटोरी

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हिमालय टाइम्स गबर सिंह भण्डारी

पौड़ी/श्रीनगर गढ़वाल। पर्वतीय अंचल पौड़ी जनपद का मुख्यालय जिसे हम मंडल मुख्यालय भी कहते हैं,अपने ठीक पीछे एक अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य समेटे बैठी है गगवाडस्यूं घाटी। यह घाटी कटोरी आकार की है,जो चारों ओर से पहाड़ों की गोद में समाई हुई है और लगभग 33 सुंदर गांवों का घर है। यह घाटी अपनी सुरम्यता,सांस्कृतिक परंपरा और अद्भुत सूर्यास्त के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यहां का सूर्यास्त शायद दुनिया के सबसे मनमोहक दृश्यों में से एक है,जब डूबते सूरज की लालिमा इस घाटी को सुनहरी चादर में ढक देती है,तो दृश्य अलौकिक हो उठता है। इस घाटी का प्रमुख बाजार ल्वाली (Lwali) है,जिसके समीप ही ल्वाली झील निर्माणाधीन है। यह झील जब पूर्ण रूप से बन जाएगी,तो यह पूरी घाटी के आकर्षण में चार चांद लगा देगी।
देवभूमि का दिव्य केंद्र-सिद्धपीठ श्री देवलेश्वर महादेव मंदिर
गगवाडस्यूँ घाटी के बलोडी गांव में स्थित सिद्धपीठ श्री देवलेश्वर महादेव मंदिर इस क्षेत्र की आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। यह मंदिर पौड़ी से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहां तक पक्की सड़क द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। मंदिर के दर्शन के साथ-साथ जब आप इस घाटी को निहारते हैं,तो मन स्वतः ही इस भूमि के सौंदर्य में खो जाता है। वर्ष 2016 से यहाँ पर बैकुंठ चतुर्दशी के पावन अवसर पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है,जो अब इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। इस मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और भगवान महादेव से मनोकामनाएं मांगते हैं। कैसे प्रकट हुए देवलेश्वर महादेव-एक दिव्य कथा
धर्मग्रंथों और स्थानीय परंपराओं के अनुसार,व्यास मुनि के 108 प्रमुख शिष्यों में से एक थे देवल मुनि। अपने गुरु की आज्ञा से वे भगवान विष्णु की आराधना हेतु एक शांत और सुंदर स्थान की खोज में निकले। लंबे भ्रमण के बाद जब वे गगवाडस्यूं घाटी के बलोडी गांव पहुंचे,तो उन्हें यह स्थान अत्यंत उपयुक्त लगा। उन्होंने अपनी नारायणी शिला यहीं स्थापित की और भगवान विष्णु की कठोर तपस्या आरंभ कर दी। उस समय इस क्षेत्र पर विडलाक्ष नामक राक्षस का आतंक था,जो भगवान विष्णु का शत्रु था। जब उसे ज्ञात हुआ कि कोई ऋषि विष्णु की उपासना कर रहा है,तो वह क्रोध में भरकर देवल मुनि की तपस्या भंग करने आया। परंतु वह न तो उनकी तपस्या तोड़ पाया,न ही उनका वध कर सका। अंततः उसने क्रोध में आकर देवल मुनि को उनकी नारायणी शिला सहित समीप बह रही नदी में फेंक दिया। उस समय चातुर्मास का पवित्र काल चल रहा था-यह अवधि स्वयं भगवान भोलेनाथ के अधीन मानी जाती है। भगवान शंकर अपने गणों सहित पृथ्वी का संरक्षण कर रहे थे। उन्हीं के गण भृंगी ने यह घटना देखी। भृंगी ने तत्काल विडलाक्ष को युद्ध के लिए ललकारा और उसका वध कर दिया। इसके बाद उन्होंने देवल मुनि को शिला सहित नदी से बाहर निकाला। धीरे-धीरे जब देवल मुनि ने अपनी आंखें खोली,तो उनके सामने एक अद्भुत श्वेत पुरुष खड़े थे। जब उन्होंने पूछा-यह तेजस्वी पुरुष कौन हैं,तो भृंगी ने उत्तर दिया,ये स्वयं देवाधिदेव महादेव हैं। यह सुनकर देवल मुनि भावविभोर हो उठे। उन्होंने कहा,मैं तो विष्णु की उपासना कर रहा था,फिर दर्शन महादेव ने क्यों दिए,भृंगी ने उत्तर दिया,हे मुनिवर भगवान विष्णु और भगवान महादेव में कोई भेद नहीं है। अब जब यहां महादेव ने स्वयं प्रकट होकर आपकी रक्षा की है,तो आपको इस स्थान पर उनकी आराधना करनी चाहिए। यह कहकर भृंगी वहां से अंतर्धान हो गए। देवल मुनि ने उसी स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की और दीर्घकाल तक देवाधिदेव महादेव की आराधना करते रहे। अंततः उन्होंने इसी भूमि पर देह त्याग दी। तब से यह स्थान देवल मुनि की स्मृति में देवलेश्वर महादेव नाम से प्रसिद्ध हुआ। श्रद्धालु मानते हैं कि यहां भगवान महादेव अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं-विशेषकर जो दंपति संतान की इच्छा लेकर यहां आते हैं, उनकी झोली कभी खाली नहीं लौटती। बैकुंठ चतुर्दशी मेला-आस्था,संस्कृति और श्रद्धा का संगम
यहां वर्षों से खड़े दिए का यज्ञ होता आ रहा है। किंतु वर्ष 2016 से इसे संगठित रूप में भव्य मेले के रूप में मनाया जाने लगा। बैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर हजारों श्रद्धालु यहां एकत्र होते हैं, मंदिर परिसर दीपों से जगमगा उठता है और सम्पूर्ण घाटी हर हर महादेव के जयघोष से गूंज उठती है। गगवाडस्यूं घाटी न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जानी जाती है,बल्कि यह देवभूमि उत्तराखंड की आस्था,परंपरा और पौराणिक गौरव का जीवंत प्रतीक भी है। यहां का हर पत्थर,हर झरना,और हर हवा की लहर भगवान शिव की महिमा का बखान करती प्रतीत होती है। जो एक बार देवलेश्वर महादेव के दर पर पहुंचता है उसका हृदय स्वयं शिवमय हो जाता है।

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