भारतीय लोकतंत्र की परीक्षा: 75 साल बाद हम कहां हैं?

भारत, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र, वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद 1950 में अपने संविधान के साथ एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बना। आज, लगभग 75 वर्षों के बाद यह सवाल उठना

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भारत, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र, वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद 1950 में अपने संविधान के साथ एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बना। आज, लगभग 75 वर्षों के बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है: क्या हमारा लोकतंत्र अपने मूल सिद्धांतों पर कायम है? क्या वह “जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता का शासन” के आदर्श को निभा रहा है?

लोकतंत्र की नींव और मूल उद्देश्य

भारतीय लोकतंत्र की नींव चार मुख्य स्तंभों पर टिकी है — कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और मीडिया। इन संस्थाओं का उद्देश्य है सत्ता का संतुलन बनाए रखना, जवाबदेही तय करना और नागरिकों को अधिकार व स्वतंत्रता देना। संविधान में समानता, स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय जैसे मूल्य सुनिश्चित किए गए हैं।

वर्तमान स्थिति: उपलब्धियाँ और विफलताएँ

पिछले सात दशकों में, भारत ने चुनावी प्रक्रिया में अद्वितीय सफलता पाई है। लोकसभा चुनाव, पंचायत स्तर तक स्थानीय निकाय चुनाव, और मतदाता जागरूकता जैसे क्षेत्रों में भारत की लोकतांत्रिक भागीदारी सराहनीय रही है।

लेकिन इन सबके बावजूद, आज का यथार्थ चिंताजनक है।

  • विधायिका में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले जनप्रतिनिधियों की संख्या बढ़ी है।
  • मीडिया, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, अब TRP और राजनीतिक प्रभाव की चपेट में आता जा रहा है।
  • न्यायपालिका की स्वायत्तता और न्याय में देरी जैसे मुद्दे भी लोकतंत्र की गति को बाधित करते हैं।
  • संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता पर भी सवाल उठते रहे हैं।

जनभागीदारी: जागरूकता या उदासीनता?

लोकतंत्र केवल चुनावों तक सीमित नहीं है। जनभागीदारी, विचारों की अभिव्यक्ति, विरोध का अधिकार, और सरकार की जवाबदेही तय करना – ये सभी लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं। हालांकि आज का युवा सोशल मीडिया पर मुखर है, लेकिन जमीनी स्तर पर सक्रिय भागीदारी में कमी नजर आती है।
क्या यह लोकतंत्र का स्वस्थ संकेत है या फिर लोकतंत्र के प्रति बढ़ती उदासीनता?

लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियाँ

  1. धर्म और जाति आधारित राजनीति
  2. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नियंत्रण
  3. सूचना का अधिकार (RTI) कमजोर पड़ना
  4. फेक न्यूज़ और सोशल मीडिया का दुरुपयोग
  5. विपक्ष की आवाज़ को दबाया जाना

ये सभी चिंताएं लोकतंत्र को कमजोर करने वाली हैं। अगर इन्हें समय रहते नहीं रोका गया, तो भारत का लोकतंत्र केवल एक चुनावी प्रणाली बनकर रह जाएगा — न कि एक जीवंत और भागीदार व्यवस्था।

आगे का रास्ता: सुधार और संकल्प

भारत का लोकतंत्र अब एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। सुधारों की आवश्यकता है —

  • चुनाव सुधार,
  • मीडिया की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना,
  • न्यायिक प्रक्रिया को तेज़ और पारदर्शी बनाना,
  • और सबसे ज़रूरी, जनता को लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति जागरूक करना

निष्कर्ष: क्या हम लोकतंत्र के योग्य हैं?

75 साल बाद, भारत ने बहुत कुछ हासिल किया है, लेकिन चुनौतियां अब भी कम नहीं हैं। यह लोकतंत्र की असली परीक्षा का समय है। सवाल यह नहीं कि लोकतंत्र कितना मजबूत है, बल्कि यह है कि क्या हम, इसके नागरिक, लोकतंत्र के मूल्य समझते हैं और उन्हें जिंदा रख पाएंगे?

यदि हम सब मिलकर लोकतांत्रिक मूल्यों को संरक्षित करें, सवाल पूछें, जवाबदेही तय करें, और भागीदारी निभाएं, तभी हम कह सकेंगे — हां, 75 साल बाद भी भारतीय लोकतंत्र जीवंत है और आगे बढ़ रहा है।

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