हिमालय टाइम्स –डॉ.कमल किशोर डुकलान
भारतीय जीवन दर्शन को मिलेगा कक्षाओं में स्थान,भावी पीढ़ी बनेगी नैतिक,विवेकशील और नेतृत्व-सम्पन्न उत्तराखंड की विद्यालयी शिक्षा में अब केवल किताबों का ज्ञान नहीं,बल्कि जीवन के मूल्यों का पाठ भी पढ़ाया जाएगा। प्रदेश के विद्यालयी शिक्षा विभाग ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आलोक में श्रीमद्भगवद्गीता एवं रामायण को कक्षा-पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने का निर्णय लिया है। इस पहल का उद्देश्य केवल धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन कराना नहीं,बल्कि छात्रों में नैतिकता,विवेकशीलता,कर्तव्यबोध,भावनात्मक संतुलन और नेतृत्व क्षमता जैसे गुणों का विकास करना है। डॉ.कमल किशोर डुकलान के अनुसार,यह निर्णय न केवल शैक्षणिक दृष्टि से ऐतिहासिक है,बल्कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान की दिशा में एक सशक्त कदम भी है। भारतीय ज्ञान परंपरा की समृद्ध विरासत-भारत की ज्ञान परंपरा वेदों,उपनिषदों,पुराणों और शास्त्रों के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थानांतरित होती रही है। यह परंपरा न केवल आध्यात्मिक और धार्मिक थी,बल्कि वैज्ञानिक सोच,चिकित्सा,गणित,खगोलशास्त्र और व्यवहार विज्ञान जैसी अनेक शाखाओं को भी समाहित करती रही है। भारतीय ज्ञान परंपरा में जीवन के पांच कोश-अन्नमय,प्राणमय,मनोमय,विज्ञानमय और आनंदमय कोश-जैसे सिद्धांतों के माध्यम से मनुष्य के संपूर्ण विकास की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। यह केवल धार्मिक सोच नहीं,बल्कि एक समग्र वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोण है। रामायण और गीता: जीवन का मार्गदर्शन-श्रीराम का आदर्श चरित्र और श्रीकृष्ण का कर्मयोग जीवन के हर मोड़ पर सही निर्णय लेने की प्रेरणा देता है। श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश कर्मण्येवाधिकारस्ते छात्रों को कर्मशील बनाता है,तो रामायण की शिक्षाएं सेवा,त्याग और मर्यादा की भावना को पुष्ट करती हैं। भगवद्गीता का यह सिद्धांत कि समत्वं योग उच्यते-अर्थात सुख-दुख,सफलता-विफलता में समभाव रखना-मानसिक संतुलन और तनाव प्रबंधन की दृष्टि से आज भी अत्यंत प्रासंगिक है। आध्यात्मिकता में वैज्ञानिकता का समन्वय-गीता और रामायण को मात्र धार्मिक ग्रंथ कहना इनके गूढ़ संदेशों के साथ अन्याय होगा। इनमें जीवन विज्ञान,व्यवहार शास्त्र,मनोविज्ञान,योग और आत्मज्ञान के तत्व वैज्ञानिक तरीके से समाहित हैं। रामायण में वर्णित रामसेतु को आज भी एडम्स ब्रिज के रूप में वैज्ञानिक आधार प्राप्त है,जो इस ग्रंथ की ऐतिहासिकता को पुष्ट करता है। नई शिक्षा नीति में भारतीयता की गूंज-राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय संस्कृति और मूल्यों को पुनः शिक्षा प्रणाली में प्रतिष्ठित करने की दिशा में एक सशक्त आधार बनी है। इस नीति के तहत अब उत्तराखंड के छात्र श्रीराम और श्रीकृष्ण के आदर्शों से प्रेरणा लेकर न केवल विद्वान,बल्कि अच्छे नागरिक भी बनेंगे। डॉ.डुकलान ने कहा कि रामायण और गीता जैसे ग्रंथों को शिक्षा में शामिल करना छात्र-छात्राओं के समग्र विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगा। यह निर्णय भावी पीढ़ी को केवल डिग्रीधारी नहीं,बल्कि संस्कारी,चिंतनशील और उत्तरदायी नागरिक बनाएगा। यह निर्णय मात्र पाठय पुस्तकों में कुछ अध्याय जोड़ने का नहीं,बल्कि भारत की आत्मा को शिक्षा में पुनः प्रतिष्ठित करने की पहल है। गीता का ज्ञान और राम का आदर्श, अब विद्यार्थियों की पाठशाला में।