
हिमालय टाइम्स गबर सिंह भण्डारी
श्रीनगर गढ़वाल। हिमालय की ऊंची चोटियों,बर्फ से ढके देवपथों और सीमांत संस्कृति की दिव्य आभा के मध्य मंगलवार को श्रीदेवताल-माणा पास लोक-विरासतीय सीमा दर्शन यात्रा सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। यह यात्रा भारत-तिब्बत चीन सीमा पर स्थित18,500 फीट ऊंचाई वाले श्रीदेवताल-माणा पास क्षेत्र में आयोजित की जाती है,जो श्री बदरीनाथ धाम से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस वर्ष घस्तोली से माणा पास के बीच बर्फबारी के कारण मार्ग क्षतिग्रस्त हो जाने से यात्रा को देवताल के स्थान पर नागताल में सम्पन्न किया गया। मार्ग की कठिनता को देखते हुए चमोली जिला प्रशासन ने इस बार मात्र 15 श्रद्धालु तीर्थयात्रियों को ही अनुमति दी। यात्रा का नेतृत्व उत्तराखंड वरिष्ठ नागरिक कल्याण परिषद के अध्यक्ष रामचंद्र गौड़ ने किया। उन्होंने कहा हिमालय को नजदीक से देखना आत्मा को स्पर्श करने जैसा अनुभव है। ऐसी यात्राएं न केवल श्रद्धा का,बल्कि राष्ट्रीय एकता और सीमांत जनजीवन से जुड़ाव का प्रतीक हैं। गौड़ ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया कि श्रीदेवताल-माणा पास यात्रा को हर वर्ष वरिष्ठ नागरिकों के लिए निशुल्क आयोजित किया जाए,ताकि अधिक से अधिक लोग इस हिमालयी धरोहर के साक्षी बन सकें। परंपरायात्रा के संयोजक प्रो.डाॅ.सुभाष चंद्र थलेड़ी ने बताया कि इस यात्रा की शुरुआत वर्ष 2015 में स्व.मोहन सिंह रावत गांववासी पूर्व कैबिनेट मंत्री उत्तराखंड द्वारा की गई थी। आज यह यात्रा उनके प्रति श्रद्धांजलि और लोक-जागरण का प्रतीक बन चुकी है। प्रो.थलेड़ी ने कहा कि आने वाले वर्षों में इस यात्रा को नीति घाटी के अन्य धार्मिक स्थलों में टिम्मरसैंण की अमरनाथ गुफा,रिमखिम और नीति गांव तक विस्तार दिया जाएगा,जिससे सीमांत क्षेत्रों की लोक-विरासत,धार्मिक चेतना और राष्ट्रीय एकता को बल मिलेगा। यात्रा के संरक्षक पंडित भास्कर डिमरी ने बताया कि श्रीदेवताल सरोवर को पवित्र सरस्वती नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। यह झील विश्व की सर्वाधिक ऊंचाई पर स्थित पवित्र सरोवरों में से एक है,जिसकी पवित्रता कैलाश मानसरोवर के समान मानी जाती है। उन्होंने बताया कि वर्ष 1962 के बाद यह क्षेत्र बंद था,परंतु स्व.गांववासी के अथक प्रयासों से 2015 में सेना और प्रशासन की अनुमति से यह यात्रा पुनः प्रारंभ की गई। तब से यह यात्रा प्रतिवर्ष लोक-आस्था और सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक के रूप में संपन्न होती है। प्रसिद्ध कवि डॉ.नीरज नैथानी ने सीमांत क्षेत्रों की सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा यह यात्रा लोक-धरोहरों से आत्मीय संबंध जोड़ने का प्रतीक है। उन्होंने इस अवसर पर अपनी प्रेरक कविता क्या तुमने कभी किसी चट्टान से बात की है-सावधान-ये हिमालय जड़ी-बूटियों का निर्माण निरंतर जारी है,का वाचन कर हिमालयी पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। बदरीनाथ के समाजसेवी राजेश नंबूरी ने कहा कि स्व.गांववासी की दुरदृष्टि ने इस यात्रा को एक नई पहचान दी। लखनऊ से आए राजेश राय ने भावुक स्वर में कहा हिमालय को नजदीक से देखने से ही लगता है कि यह धरती सच में देवभूमि है। इस यात्रा का धार्मिक पक्ष भी अत्यंत अद्भुत है। स्व.गांववासी ने देवताल सरोवर के तट पर दक्षिणमुखी श्री हनुमान मंदिर की स्थापना की थी,जो विश्व का सबसे ऊंचाई पर स्थित हनुमान मंदिर माना जाता है। देवताल का धार्मिक महत्व यह भी है कि यहीं से सरस्वती नदी निकलकर बदरीनाथ धाम के समीप अलकनंदा में विलीन होती है। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण द्वापर युग में इसी मार्ग से कैलाश मानसरोवर गए थे। यात्रा परंपरानुसार श्री बदरीनाथ धाम के पवित्र ध्वज (बदरीध्वज) की अगुवाई में प्रारंभ हुई। रावल ने यह ध्वज पंडित भास्कर डिमरी को विधिवत रूप से सौंपा। पूरे मार्ग में भारतीय सेना और आईटीबीपी के जवानों ने यात्रियों का मार्गदर्शन किया,वहीं असम रेजिमेंट द्वारा यात्रियों का स्वागत किया गया। इस वर्ष यात्रा में नवीन थलेड़ी,संजीव कंडवाल,जितेंद्र कुमार,राहुल,बिक्रम लाल शाह सहित सीमित श्रद्धालु सम्मिलित हुए। आयोजन समिति ने जिला प्रशासन और सेना का विशेष धन्यवाद ज्ञापित किया। यात्रा का उद्देश्य-लोकधरोहर का संरक्षण और राष्ट्रभाव का संवर्धन,श्री देवताल-माणा पास लोक-विरासतीय यात्रा न केवल एक तीर्थयात्रा है,बल्कि यह हिमालयी लोक-संस्कृति,सीमांत जनजीवन और राष्ट्रीय चेतना को सशक्त करने का अभियान है। यह यात्रा स्व.मोहन सिंह रावत गांववासी की स्मृति और उनके हिमालय प्रेम को नमन करते हुए संपन्न हुई।