स्थानीय संसाधनों से आत्मनिर्भरता की राह पर चमराडा सहकारिता

हिमालय टाइम्सगबर सिंह भंडारी पौड़ी/श्रीनगर गढ़वाल। पर्वतीय क्षेत्र की महिलाएं अब आत्मनिर्भरता की मिसाल बनकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे रही हैं। जनपद पौड़ी के विकासखंड खिर्सू के अंतर्गत आने वाला छोटा-सा ग्राम

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गबर सिंह भंडारी

पौड़ी/श्रीनगर गढ़वाल। पर्वतीय क्षेत्र की महिलाएं अब आत्मनिर्भरता की मिसाल बनकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा दे रही हैं। जनपद पौड़ी के विकासखंड खिर्सू के अंतर्गत आने वाला छोटा-सा ग्राम चमराडा आज पूरे जनपद के लिए प्रेरणादायक उदाहरण बन चुका है। यहां की महिलाओं ने गाय के गोबर से आजीविका का सशक्त मॉडल तैयार कर दिखाया है। ग्रामोत्थान परियोजना के तहत संचालित भूमि स्वायत्त सहकारिता चमराडा द्वारा स्थापित गोबर आधारित धूपबत्ती,साम्ब्रानी कप और दीपक निर्माण इकाई ने ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक स्थिति को न केवल सुदृढ़ किया है,बल्कि पर्यावरण संरक्षण,स्वच्छता और स्थानीय संसाधनों के उपयोग की अनूठी मिसाल पेश की है। सीमित कृषि भूमि और पशुपालन आधारित अर्थव्यवस्था वाले इस क्षेत्र में गोबर की पर्याप्त उपलब्धता ने इस उद्योग की नींव मजबूत की। सहकारिता समूह अब अपने सदस्यों से रुपए 20 प्रति किलो की दर से सूखा गोबर खरीदता है। इकाई में कार्यरत महिलाओं को रुपए 300 प्रतिदिन तक की मजदूरी प्राप्त हो रही है,जिससे उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार आया है। वर्तमान में इस सहकारिता से 64 स्वयं सहायता समूह,9 ग्राम संगठन और कुल 385 महिलाएं सक्रिय रूप से जुड़ी हैं। यह यूनिट मुख्यमंत्री उद्यमशाला योजना और ग्रामोत्थान योजना के समन्वय से स्थापित की गई है। महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे गोबर आधारित उत्पादों जैसे साम्ब्रानी कप,धूपबत्ती और दीपक की स्थानीय बाजारों में अच्छी मांग है। आगामी दीपावली और नवरात्रि पर्वों को ध्यान में रखते हुए सहकारिता ने 8 से 10 लाख रुपये के व्यवसाय का लक्ष्य रखा है। धीरे-धीरे यह यूनिट पूरे जनपद के लिए मॉडल प्रोजेक्ट के रूप में उभर रही है। सहकारिता की सदस्य गीता देवी बताती हैं पहले गांव में गोबर बेकार जाता था,अब यही हमारी रोजी-रोटी का साधन बन गया है। घर के पास ही रोजगार मिलना हमारे लिए बहुत बड़ी राहत है। इकाई की प्रबंधक शकुंतला नेगी कहती हैं,इस यूनिट ने हमें आत्मनिर्भर बनाया है। गांव में स्वच्छता आई है और पर्यावरण के प्रति नई सोच विकसित हुई है। अब हम न केवल कमा रहे हैं,बल्कि प्रकृति की रक्षा भी कर रहे हैं। ग्रामोत्थान परियोजना अधिकारी कुलदीप बिष्ट ने बताया कि चमराडा की यह यूनिट ग्रामीण महिलाओं को स्थानीय संसाधनों के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक सफल पहल है। उन्होंने कहा हम इस मॉडल को अन्य ग्राम संगठनों में भी लागू करने की दिशा में काम कर रहे हैं। आने वाले समय में उत्पादों की गुणवत्ता,पैकेजिंग और मार्केटिंग को और सशक्त बनाकर सहकारिता को स्थायी बाजार और स्थानीय ब्रांड पहचान दी जाएगी। चमराडा की यह पहल दिखाती है कि यदि स्थानीय संसाधनों का वैज्ञानिक और सामुदायिक उपयोग किया जाए,तो छोटे-से गांव भी स्वावलंबन के केंद्र बन सकते हैं। गाय के गोबर से तैयार उत्पादों ने महिलाओं को आर्थिक आजादी,समाज को स्वच्छता और पर्यावरण को नई जीवन-शक्ति दी है। यही है ग्रामोत्थान की असली परिभाषा जहां महिलाएं,प्रकृति और अर्थव्यवस्था,तीनों मिलकर विकास की नई कहानी लिख रही हैं।

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