भारत में राजनीति का इतिहास बेहद समृद्ध और प्रेरणादायक रहा है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर संविधान निर्माण तक, हमारे नेताओं ने निस्वार्थ भाव से देश के लिए काम किया। लेकिन आज जब हम वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर नज़र डालते हैं, तो कई सवाल खड़े होते हैं – क्या आज की राजनीति अपने मूल सिद्धांतों से भटक चुकी है? क्या जनसेवा अब केवल एक नारा बनकर रह गई है?
राजनीति का बदलता स्वरूप
आज की राजनीति पहले की अपेक्षा कहीं अधिक व्यावसायिक, अवसरवादी और रणनीतिक हो गई है। दल बदलना, व्यक्तिगत लाभ के लिए विचारधारा छोड़ना और सत्ता में बने रहने के लिए किसी भी स्तर तक जाना – यह सब सामान्य होता जा रहा है। जनता के मुद्दे, जैसे बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य – इन पर बहस कम और व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप अधिक दिखाई देते हैं।
राजनीतिक विमर्श अब विचारों के टकराव की बजाय, वक्तव्य युद्ध और सोशल मीडिया की ट्रोल आर्मी में बदलता जा रहा है। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह खतरे की घंटी है।
युवा और राजनीति
भारत दुनिया का सबसे युवा देश है, लेकिन राजनीति में युवाओं की भागीदारी अभी भी सीमित है। राजनीति में वंशवाद हावी है, और योग्य युवाओं को अक्सर अवसर नहीं मिलते। इससे निराश होकर कई होनहार युवा राजनीति से दूर हो जाते हैं, जिससे एक संभावनाशील बदलाव की संभावना भी क्षीण हो जाती है।
हालांकि, कुछ युवा नेता सकारात्मक उदाहरण भी बन रहे हैं, जो नई सोच, पारदर्शिता और जनहित के मुद्दों को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह एक उम्मीद की किरण है, जिसे बढ़ावा देने की जरूरत है।
जनता की भूमिका
राजनीति केवल नेताओं की बात नहीं है – जनता भी इसमें बराबर की भागीदार होती है। यदि हम केवल चुनाव के समय जागरूक होते हैं और बाकी समय चुप रहते हैं, तो हम भी इस व्यवस्था की गिरावट के जिम्मेदार हैं। आज जरूरत है कि जनता भी राजनीतिक सोच विकसित करे, अपने नेताओं से जवाबदेही मांगे और नीतियों को समझकर सवाल उठाए।
मीडिया और राजनीति का गठजोड़
आज की राजनीति में मीडिया की भूमिका भी बहस का विषय है। जहां एक ओर मीडिया जनता को सूचना देने और सत्ता को जवाबदेह बनाने का माध्यम होना चाहिए, वहीं दूसरी ओर कुछ मीडिया संस्थान राजनीतिक दलों के प्रचार उपकरण बनते जा रहे हैं। यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए घातक है, क्योंकि इससे सच्चाई छिप जाती है और आम जनता भ्रमित होती है।
राजनीति में नैतिकता की आवश्यकता
राजनीति का उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना नहीं, बल्कि जनकल्याण के लिए नीति निर्माण करना होना चाहिए। जब तक राजनीति में नैतिकता, पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही नहीं होगी, तब तक बदलाव की उम्मीद करना मुश्किल है।
निष्कर्ष
आज की राजनीति चुनौतियों से भरी है, लेकिन यह पूरी तरह निराशाजनक नहीं है। यदि जनता सजग हो, युवा सक्रिय हों, और राजनेता सिद्धांतों पर टिके रहें, तो राजनीति फिर से जनसेवा का माध्यम बन सकती है। हमें यह याद रखना होगा कि राजनीति अगर गंदी हो गई है, तो उसे साफ करना भी हमारी जिम्मेदारी है।
राजनीति को गरिमा वापस दिलाने का समय आ गया है – जहाँ सत्ता नहीं, सेवा प्राथमिक हो; जहाँ वादे नहीं, परिणाम बोलें; और जहाँ नेता नहीं, जनता केंद्र में हो।